bouncing ball

गुरुवार, दिसंबर 30, 2010

नादाँ बचपन

कागज़ की कश्ती थी,
पानी का किनारा था,
खेलने की मस्ती थी,
दिल यह आवारा था,
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में ,
वो नादाँ बचपन ही कितना प्यारा था.

शनिवार, दिसंबर 25, 2010

जिंदगी का सच (truth of life)

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता.
किसी को जमीं तो किसी को आसमां नहीं मिलता.