bouncing ball

गुरुवार, दिसंबर 30, 2010

नादाँ बचपन

कागज़ की कश्ती थी,
पानी का किनारा था,
खेलने की मस्ती थी,
दिल यह आवारा था,
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में ,
वो नादाँ बचपन ही कितना प्यारा था.

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